Wednesday, March 17, 2010
कितना रोका था हमने,
बेलगाम आंसुओं को.
फिर भी छलक आये,
और तुम
मुस्कुराये |
दिलों के तार चाहे,
कितना कि जुड़ जाएँ,
मगर तोड़ आये,
और तुम मुस्कुराये |
छवि हमारी तेरे दिल में,
सिमट कर रह गयी,
हम उफ़ तक न कर पाए,
और तुम मुस्कुराये |
साँसें थम सी जाती थी,
एक आहट पर तेरी,
बेबसी पे हम कसमसाए,
और तुम मुस्कुराये
|
हमारी हंसी छीन कर,
ख़ुशी मिलती है ग़र,
तो लेलें जान
हम सो जाएँ,
और वो हमेशा मुस्कुराएँ |
Tuesday, January 26, 2010
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